कुछ दिनों पहले करीब बारह साल का एक बच्चा गुज़र गया। वह मेरी कलोनी से कुछ दूर रहता था। उसका नाम बिर्जू था और वह ३ रुपयों में आते-जाते लोगों को निम्बू-पानी पिलाता था, तब भी जब जनाब-ए-आलम सूर्य अपनी चादर खोले किरणों के स्वर ऊँची से ऊँची तानों पर लगा रहे होते थे। एक-आद बार वह मेरे साथ बॅट-बॉल भी खेल चुका था, ऐसे करारेपन के साथ कि पूछो ही मत! यह पता नही कि वह मर गया या नही, किंतू वह पिछले सप्ताह से गायब है, और यह उसके करीबी लोगों के लिये मौत से ज़्यादे अलग नही।
अगले दिन मैने अख़बार मे उसकी ख़बर ढूँढी। पिछले शाम ही को उसके बाबूजी ने रपट लिखवाई थी। लेकिन मुझे वह न दिखा। बल्कि, बहुतेक पन्नों पर सत्य साई बाबा को श्रद्धांजली देते हुए कई लेख मैने पाये। नरदेवता, चमत्कारी, दयालू, और पचास हज़ार करोडों के कारोबार का मुखिया। ऐसा लगा कि बिर्जू के पास नरदेवताओं के लिये कुछ सवाल ज़रूर होंगे, तो ये रहे वे सवाल:
१. ऐसे नरदेवताओं को, जो चमत्कार से सोना, हाथ-घडियाँ, अन्य वस्तुओं को प्राप्त कर लेते हैं, पचास हज़ार करोडों के कारोबार की क्या आवश्यक्ता हो सकती है?
२. जहाँ इतने लोग भूखे, बेज़ार, या जीवन की कगार पर खडे हों, वहाँ इतनी भव्य पूंजी जमा करनेवाले दयालू कहलाये जा सकते हैं?
३. कयों एक प्रधानमंत्री या मीडिया - जो जनता के प्रति जिम्मेदार नहिं - नरदेवताओं के प्रति जिम्मेदार हो जाते हैं?
४. शंकाजनक चमत्कार ठंडे निम्बू-पानी से ज़्यादा कीमती कैसे होने लगे?
५. क्या श्रद्धा, प्रशनसा और मुनादी मिलने से झूठ सच बन जाते थे?
मेरी फ़र्याद यह ही होगी कि बिर्जू जहाँ भी हो, खुश हो।